Wednesday, August 19, 2009

एक ग़ज़ल आप के लिए

दोस्तों कल नसीम अंसारी लखनऊ आई हुई थीं। नसीम एक शायरा हैं और मेरी पुरानी दोस्त हैं। उन्होंने मुझे सिखाया की कैसे ब्लॉग पर हिन्दी में पोस्ट किया जा सकता है। इस जानकारी ने मुझे आपसे अपनी ज़बान में बात करने का एक ज़रिया दे दिया। मेरे बयाज़ 'सबकुछ ' की एक ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है:
दोगले चेहरों पे खूनी मुस्कराहट किस लिए,
हर तरफ़ डर और बर्बादी की आहट किस लिए;
हक छिने कुचले गए रौंदे गए पर चुप रहे,
राख में शोलों की अब ये सुगबुगाहट किस लिए;
मुल्क के लाखों घरों में जब अँधेरा है बसा,
कुछ चुनिन्दा कोठियों में जगमगाहट किस लिए;
दश्त है वीरां हवा भी रुक चुकी है आज तो,
झाड़ियों की पत्तियों में सरसराहट किस लिए;
आज तेरे पास है दुनिया की हर नेमत मगर,
फ़िर तेरे दिल में ये गौरव छटपटाहट किस लिए...