हिन्दू धर्म अब एक धर्म नहीं रहा। वह दो धर्मों में बंट गया है:
1) सवर्ण धर्म
2) दलित धर्म
इन दिनों धर्मों में 'दलित' बहुसंख्यक हैं और 'सवर्ण' अल्पसंख्यक। परन्तु हिन्दू धर्म को एक ही धर्म मानते हुए, 'सवर्णों' को न तो 'अल्पसंख्यक' का दर्जा मिला है और न ही अल्पसंख्यक होने से जुड़े हुए संवैधानिक अधिकार। सवर्ण एक ही धर्म के हैं और एक ही प्रकार की भेदभावपूर्ण राजनीति के शिकार हैं। परंतु अति बुद्धिमान और अति-महत्वाकांक्षी होने के कारण जातियों और उपजातियों में बुरी तरह से बंटे हुए हैं। अतीत में इनके बुद्धि-कौशल और मेधा की कीमत थी, परन्तु वर्तमान व्यवस्था ने ये स्वीकार कर लिया है कि राष्ट्र सवर्णो की मेधा (merit) के बिना भी चल सकता है। भीड़तंत्र के चलते किसी में भी वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाने की शक्ति/साहस नहीं है। आगे चल कर सवर्ण धर्म के अनुयायियों की संख्या कम होती जाएगी और उनपर अत्याचार बढ़ते जाएंगे। तब सवर्ण धर्म के बिखरे हुए अनुयायियों के पास दो रास्ते होंगे:
1) भारतवर्ष छोड़ दें
2) अपने ही देश में प्रताड़ित, त्यक्त , शरणार्थियों जैसा जीवन जियें
इस होने वाली त्रासदी से बचने का सिर्फ एक तरीका है कि सभी सवर्ण धर्म के अनुयायी तत्काल अपने बीच के जातिगत अंतरों को त्याग कर एक हो जाएं और एक सर्वोच्च नेता चुन लें। फिर जहां वो नेता कहे वहीं आंख बंद कर के एकमुश्त वोट डालें। यदि सवर्ण धर्म के लोग ऐसा कर पाए तो शायद बच जाएं नहीं तो सर्वनाश निश्चित है.....
1) सवर्ण धर्म
2) दलित धर्म
इन दिनों धर्मों में 'दलित' बहुसंख्यक हैं और 'सवर्ण' अल्पसंख्यक। परन्तु हिन्दू धर्म को एक ही धर्म मानते हुए, 'सवर्णों' को न तो 'अल्पसंख्यक' का दर्जा मिला है और न ही अल्पसंख्यक होने से जुड़े हुए संवैधानिक अधिकार। सवर्ण एक ही धर्म के हैं और एक ही प्रकार की भेदभावपूर्ण राजनीति के शिकार हैं। परंतु अति बुद्धिमान और अति-महत्वाकांक्षी होने के कारण जातियों और उपजातियों में बुरी तरह से बंटे हुए हैं। अतीत में इनके बुद्धि-कौशल और मेधा की कीमत थी, परन्तु वर्तमान व्यवस्था ने ये स्वीकार कर लिया है कि राष्ट्र सवर्णो की मेधा (merit) के बिना भी चल सकता है। भीड़तंत्र के चलते किसी में भी वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाने की शक्ति/साहस नहीं है। आगे चल कर सवर्ण धर्म के अनुयायियों की संख्या कम होती जाएगी और उनपर अत्याचार बढ़ते जाएंगे। तब सवर्ण धर्म के बिखरे हुए अनुयायियों के पास दो रास्ते होंगे:
1) भारतवर्ष छोड़ दें
2) अपने ही देश में प्रताड़ित, त्यक्त , शरणार्थियों जैसा जीवन जियें
इस होने वाली त्रासदी से बचने का सिर्फ एक तरीका है कि सभी सवर्ण धर्म के अनुयायी तत्काल अपने बीच के जातिगत अंतरों को त्याग कर एक हो जाएं और एक सर्वोच्च नेता चुन लें। फिर जहां वो नेता कहे वहीं आंख बंद कर के एकमुश्त वोट डालें। यदि सवर्ण धर्म के लोग ऐसा कर पाए तो शायद बच जाएं नहीं तो सर्वनाश निश्चित है.....