Tuesday, March 31, 2020

कल पानी के काले बाज़ार की बात मैंने आप से की। आज मैं आपका ध्यान एक और काले व्यापार की तरफ आकृष्ट करना चाहूंगा। ये काला व्यापार है तथाकथित 'आयुर्वेदिक दवाओं' का। आज कल टी वी पर कई चैनलों पर इन चमत्कारिक तथाकथित 'आयुर्वेदिक दवाओं' के विज्ञापन आते रहते हैं । इन विज्ञापनों में ये दावा किया जाता है की फलां दवा से संधिवात (अर्थराईटिस) ठीक हो जाती है और फलां दवा से मधुमेह (डाईबीटीज़) का 'समग्र उपचार' हो जाता है। जिन रोगों का इलाज करने का ये विज्ञापन दावा करते हैं,वास्तव में वो रोग लाइलाज हैं और वर्तमान में इन रोगों का सिर्फ प्रबंधन(मैनजमेंट) किया जा सकता है। ये विज्ञापन मुख्यतः उन मरीजों पर फोकस करते हैं जो इन बीमारियों से परेशान हो कर कुछ भी करने को तैयार हैं। ज़्यादातर मरीज़, जो इन 'दवाओं' का सेवन प्रारंम्भ करते हैं, वह अपना एलोपैथिक इलाज बंद कर देते हैं जिससे उनका रोग कालांतर में बढ़ कर जानलेवा हो जाता है। हैरानी की बात ये है कि इन तथाकथित दवाओं के गुणों का बखान करने वाले स्वयंभू 'आयुर्वेदाचार्य' इन के असर को समझाने के लिए सारे अंग्रेजी चिकित्सा के सिद्धांतों (कॉन्सेप्ट्स)का सहारा लेते हैं। आधे से ज्यादा समय वो अंग्रेजी चिकित्सा विज्ञान के सिद्धांत भी सही नहीं बताते। बेचारी भोली भाली जनता इन त्रिपुंडधारी 'आयुर्वेदाचार्यों' की इन अनर्गल बातों में आ जाती है और इन 'दवाओं' को खरीद लेती है। कई पढ़े लिखे लोग भी इस झांसे में ये सोच कर आ जाते हैं की अगर इन दवाओं से कोई फायदा नहीं होगा तो कोई नुकसान भी नहीं होगा। मगर ये सोच सही नहीं है।गलत प्रचार ने जनता को ये विश्वास दिला दिया है कि 'आयुर्वेदिक' दवाएं 'हर्बल' होने के कारण नुकसान नहीं करतीं। मगर सच तो ये है कि 'हर्बल' दवाएं भी नुकसान कर सकती हैं। कोई भी दवा, 'हर्बल' या 'नॉन हर्बल' अपने अन्दर मौजूद रासायनिक तत्वों (एल्कालोइड्स) के कारण असर करती है,चाहे वो आयुर्वेदिक हो या अंग्रेजी। अगर गलत दवा खिला दी जाए या गलत मात्रा (डोज़) में खिला दी जाए तो कोई भी दवा नुकसान कर करती है चाहे वह किसी भी 'पैथी' की क्यों ना हो। और ये सोच भी गलत है कि आयुर्वेदिक दवाओं में सिर्फ जड़ी-बूटियों का प्रयोग होता है। तथ्य तो यह है की आयुर्वेदिक रसों और भस्मों में पारा(मरकरी), सोना,चांदी,जस्ता(जिंक) आदि कई भारी धातुओं (हैवी मेटल्स) का प्रयोग किया जाता है और इन रसों और भस्मों को बनाने की प्रक्रिया भी बहुत जटिल,गूढ़ और लम्बी है। अगर आयुर्वेदिक रसों और भस्मों को सही तरह से ना बनाया जाये या उनकी गलत डोज़ ले ली जाए तो ये दवाएं अंग्रेजी दवाओं की गलत डोज़ से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती हैं। मगर विज्ञापन के सहारे धोखा बेचने वाले इन तथ्यों से मरीजों को अवगत नहीं करवाते। हैरानी यह है कि इस प्रकार के दावों की कोई जांच भी नहीं होती और ऐसे विज्ञापनों से मोटा पैसा कमाने वाले टी वी चैनल भी यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं कि इन विज्ञापनों की ज़िम्मेदारी विज्ञापनकर्ता पर है। इस लिए मित्रों,अगर आपको मधुमेह,संधिवात या कैंसर जैसा कोई जटिल मर्ज़ है तो अपना सही इलाज डॉक्टर की सलाह से करें। अगर आयुर्वेदिक इलाज भी करना है तो भी किसी अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक/वैद्य से परामर्श कर के ही दवा लें। टी वी पर विज्ञापन देख कर इन तथाकथित 'आयुर्वेदिक दवाओं' का सेवन पैसे की बर्बादी तो है ही,ये आपके लिए जानलेवा भी साबित हो सकता है।