Friday, December 24, 2010

एक नयी ग़ज़ल

तुमने देखा है क्या हिन्दोस्तान कैसा है,
भूखे नंगों से भरा गुलसितान कैसा है;
कभी हुए हो रूबरू ज़मीन से भी क्या,
बहुत पता है तुम्हें आसमान कैसा है;
जिसके पिंजर महल की नींव में भरे तुमने,
कभी देखा गरीब का मकान कैसा है;
मसर्रतों से भरा है जहां तुम्हारा पर,
कभी सोचा है दूसरा जहान कैसा है;
बड़ा वज़न है तुम्हारी जुबां का दुनिया में,
क्या जानते हो हाल-ए-बेजुबान कैसा है ?