पढ़ना लिखना खूब सिखाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी..
कक्षा में हम आ कर बैठे, ज्यों घंटा टन-टन कर बोला,
पर जब आप नहीं आये तो, हम सब का भी धीरज डोला,
फिर हमने हुडदंग मचाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया...
कुछ दिन चला यही सब चक्कर, आखिर तुम कक्षा में आये,
फिर कुछ इधर उधर की बातें, उच्च कोटि के व्यंग्य सुनाये,
इसी तरह से समय बिताया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया...
कभी कभी ऐसा भी होता, तुम जल्दी कक्षा में आते,
हफ्ते भर की सभी पढाई, घंटे में पूरी कर जाते,
क्या सुन्दर ढंग से समझाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया...
इसी तरह कुछ महीने बीते, दिखने लगी परीक्षा आगे,
हम सब बालक बहुत डर गए, सभी आपके घर को भागे,
ट्यूशन का रास्ता दिखलाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया...
यह रास्ता सुन्दर था अनुपम, मान गए हम बालक सारे,
पर कुछ ऐसे मूर्ख बंधु थे, पढ़े खूब किस्मत के मारे,
उन सारों को फेल कराया , वाह गुरूजी, वाह गुरूजी,
पढना लिखना खूब सिखाया...
नव कक्षा में बड़ी शान से, हम सारे बालक हैं आये,
सुखी वही जो छात्र नियम से, गुरुदेव को नोट चढ़ाये,
यह तगड़ा गुर हमें सिखाया, वाह गुरूजी, वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया....
बहुत खूब शिक्षा दी हमको, अहोभाग्य तुम गुरु हमारे,
गुंडागर्दी, लफड़ा, झगडा, आते हमें विषय ये सारे,
तुमने है विद्वान् बनाया, वाह गुरूजी, वाह गुरूजी,
पढ़ना लिखना खूब सिखाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी..
(ये कविता मैंने सन 1992 में लिखी थी जब मैं बारहवीं कक्षा में था | उस समय, हमारे कॉलेज में टीचर ट्यूशन पढने के लिए छात्रों पर दबाव डालते थे | ऐसे ही एक टीचर जी की शान में मैंने ये कसीदे कहे थे | यह उस समय ही सच्चाई थी |पता नहीं 18 सालों में कुछ बदला है या नहीं...)
पढ़ना लिखना खूब सिखाया, वाह गुरूजी वाह गुरूजी..
(ये कविता मैंने सन 1992 में लिखी थी जब मैं बारहवीं कक्षा में था | उस समय, हमारे कॉलेज में टीचर ट्यूशन पढने के लिए छात्रों पर दबाव डालते थे | ऐसे ही एक टीचर जी की शान में मैंने ये कसीदे कहे थे | यह उस समय ही सच्चाई थी |पता नहीं 18 सालों में कुछ बदला है या नहीं...)