Thursday, April 15, 2010

एक नयी ग़ज़ल

कोई उम्मीद न रही उनसे
इसलिए कोई गम नहीं होता;
इश्क शम्मा नहीं है शोला है,
ये हवाओं से कम नहीं होता;
उनका दिल-दिल नहीं है सेहरा है,
मेरे अश्कों से नाम नहीं होता;
मैंने देखा है दौर-ए-ग़ुरबत में,
कोई भी हमकदम नहीं होता;
बेच देता ज़मीर गर अपना,
आज मुझ पर सितम नहीं होता....


1 comment:

  1. भई कमेण्ट करने का हौसला जाता रहता है इस मुई अंग्रेज़ी में वर्ड वेरिफ़िकेशन कराने में। ऐसा लगता है कि जामातलाशी हो रही है। ग़ज़ल ख़ूब है।

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