Thursday, April 15, 2010

एक और नयी ग़ज़ल

कुछ तो दुनिया का तौर है यारों, 
कुछ मेरा भी मिजाज़ ऐसा है;
बात दिल की ज़बां पे मत लाओ,
मेरे घर का रिवाज़ ऐसा है;
जिसे कह दूं तो ज़लज़ला आये, 
मेरे सीने में राज़ ऐसा है;
जो नवाजिश में ज़ख्म देता है,
मेरा ज़र्रानवाज़ ऐसा है;
मुझे उसमें कमी नहीं दिखती,
कुछ मेरा इम्तियाज़ ऐसा है......

2 comments:

  1. ग़ज़ल और वर्ड वेरिफ़िकेशन में अभी तक की जद्दोजहद पर ग़ज़ल ही भारी पड़ी, इस बात की मुझे ख़ुशी है, आपको भी होनी चाहिए।
    मगर कब जाने हौसला छूट जाए - सो बेहतर हो अगर आप वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लें।
    बहरहाल कहते ख़ूब हैं जनाब आप।

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  2. Dear Himanshu ji,
    I am thankful for your comment, feedback and appreciation. But I could not understand what you mean by 'word verification'. Does it have something to do with the Ghazal or the login to my blog. I would be thankful if you could kindly clarify.

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