Friday, January 21, 2011

किस तरफ़ जाऊं ? एक नयी ग़ज़ल

रिवाज़ एक तरफ़ और प्यार एक तरफ़,
खिज़ां है एक तरफ़ और बहार एक तरफ़;

मैं बंट गया हूँ किस तरफ़ मेरे कदम जाएँ,
ख़ुदा है एक तरफ़ कू-ए-यार एक तरफ़ ;

सही-गलत का फ़र्क तो पता नहीं लेकिन,
है जीत एक तरफ़ और हार एक तरफ;

तोड़ दूं रस्म-ओ-रवायत की बेड़ियाँ क्या मैं,
विसाल एक तरफ़ इंतज़ार एक तरफ़ ;

उन्हें मिलूँ के ना मिलूँ समझ नहीं आता,
तड़प है एक तरफ़ और क़रार एक तरफ़;

मैं हक़ीक़त को मान लूं या दिल की बात सुनूं ?
जफ़ा है एक तरफ़ ऐतबार एक तरफ़ ;

मैं बढ़ाता हूँ कदम और ठिठक जाता हूँ,
इक तरफ़ फ़र्ज़, दिल-ए-बेक़रार एक तरफ़ ;

मैक़दा एक तरफ़ उनकी महक एक तरफ़,
प्यास है एक तरफ़ और ख़ुमार एक तरफ़;

सर कटा दे या सर झुका के जज़्ब कर गौरव,
इक तरफ़ एक मौत, बार-बार एक तरफ़...

3 comments:

  1. Well thanks Wang. It is indeed a surprise and pleasure to receive a comment from you on my blog. I will definitely visit your blog. Take care and keep in touch.

    ReplyDelete
  2. कभी कभी ..यूँ ही अच्छी गज़ल फूट पड़ती है और तुम उसे शब्द डे देते हो .. ख़ूबसूरत शब्दों के लिए और बहुत मासूम गज़ल के लिए बहुत मुबारक |

    ReplyDelete
  3. Shukriya Mitr. Your appreciation of my work gives me motivation to go on.

    ReplyDelete