छीन कर रोटी मेरी उसको खिला दी,
मैं रहा भूखा मुझे ये ग़म नहीं है;
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
उसने भी पाई बहुत तालीम ऊंची,
उसके वालिद भी कहीं पर हैं कमिश्नर;
वो है कहता खुद को अंग्रेज़ी में 'पिछड़ा',
उसके घर में कुछ दलित-पिछड़े हैं नौकर;
नौकरी मिलने का पर जब वक़्त आया,
उसको बैसाखी मिली के दम नहीं है;
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
वो अगर पिछड़ा है तो है कौन 'अगड़ा',
उसके घर में भी है ताक़त और दौलत;
उसको क्यों चांदी की थाली पर मिला वो,
जिसकी खातिर मैंने की जीतोड़ मेहनत;
ये अगर इंसाफ है तो ज़ुल्म क्या है?
क्या मेरे इस ज़ख्म का मरहम कहीं है ?
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
(गौरव-2003)
मैं रहा भूखा मुझे ये ग़म नहीं है;
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
उसने भी पाई बहुत तालीम ऊंची,
उसके वालिद भी कहीं पर हैं कमिश्नर;
वो है कहता खुद को अंग्रेज़ी में 'पिछड़ा',
उसके घर में कुछ दलित-पिछड़े हैं नौकर;
नौकरी मिलने का पर जब वक़्त आया,
उसको बैसाखी मिली के दम नहीं है;
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
वो अगर पिछड़ा है तो है कौन 'अगड़ा',
उसके घर में भी है ताक़त और दौलत;
उसको क्यों चांदी की थाली पर मिला वो,
जिसकी खातिर मैंने की जीतोड़ मेहनत;
ये अगर इंसाफ है तो ज़ुल्म क्या है?
क्या मेरे इस ज़ख्म का मरहम कहीं है ?
रंज है इतना के वो रोटी जिसे दी,
मुझसे बेहतर है वो मुझसे कम नहीं है..
(गौरव-2003)
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